• Setup menu at Appearance » Menus and assign menu to Top Bar Navigation
Saturday, February 23, 2019
#MeraRanng
  • होम
  • चर्चा में
  • स्पेशल रिपोर्ट
  • मेरा अधिकार
  • मेरी अभिव्यक्ति
  • हेल्थ
  • इनसे मिलिये
  • किताबें
  • सिनेमा
  • LGBTQ
  • गतिविधियां
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • चर्चा में
  • स्पेशल रिपोर्ट
  • मेरा अधिकार
  • मेरी अभिव्यक्ति
  • हेल्थ
  • इनसे मिलिये
  • किताबें
  • सिनेमा
  • LGBTQ
  • गतिविधियां
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
MeraRanng
Home सिनेमा

हर पुरुष के भीतर एक स्त्री होती हैः अविनाश

mera by mera
February 18, 2019
in सिनेमा
1
हर पुरुष के भीतर एक स्त्री होती हैः अविनाश
587
SHARES
3.3k
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter

पत्रकार अविनाश दास ने फिल्म ‘अनारकली ऑफ आरा’ में एक ऐसी स्त्री को अपने स्वाभिमान के लिए संघर्ष करते दिखाया गया है, जो नाचने-गाने वाली है और जिसके बारे में हमारे समाज में मान लिया जाता है कि उसका कोई आत्मसम्मान नहीं होता। पहली ही फिल्म एक स्त्री केंद्रित विषय पर बनाने और इससे जुड़े कई और मुद्दों पर मेरा रंग ने अविनाश से विशेष बातचीत की।

मेरा रंगः इस फिल्म की नायिका की लीड किरदार में है – पहली ही फिल्म में नायिका प्रधान विषय चुनने की वजह?

You might also like

बॉलीवुड की पहली स्टंटवुमन रेशमा की कहानी पर बनी फिल्म, कौन थी रेशमा पठान?

निहलानी जी, फीमेल फैंटेसी से इतनी घबराहट क्यों हुई आपको?

ओके जानूँ – प्यार में आदत पड़ जाती है एक-दूसरे की

अविनाशः दरअसल मेरे दिमाग़ में जो भी कहानी आती है, वह महिलाओं की दुनिया में ज़्यादा घुसी होती है। इसकी कोई साकांक्ष वजह नहीं है। हो सकता है स्त्री की दुनिया मुझे अपनी ओर ज़्यादा खींचती हो। मेरी मां बहुत पहले गुज़र चुकी है – तो मुझे हर जगह उसकी तलाश रहती है। याद कीजिए प्रहार की फिल्म की वो ठुमरी। याद पिया की आये। नाना पाटेकर वेश्याओं की मंडी से गुज़रता है, तो वहां के घरों से आने वाली आवाज़ उसे अपनी मां की आवाज़ सी लगती है। मेरा जाती ज़िंदगी में यही हाल है।

मेरा रंगः राजकपूर से लेकर मौजूदा दौर तक अधिकतर बड़ी और यादगार फिल्में नायिका को केंद्र में रखकर बनीं हैं। आप इससे कितने सहमत है और इसकी वजह क्या मानते हैं?

अविनाशः दरअसल रीयल दुनिया में महिलाएं वोकल रही हैं। लेकिन साहित्य और सिनेमा में उन्हें थोड़ा कमनीय रखा गया है। जब साहित्य और सिनेमा में महिलाएं अपने असली वजूद के साथ आती हैं, तो ज़्यादा असर डालती हैं। हाल में पीकू की नायिका को देखिए। अपनी एटीट्यूड के साथ भी पिता की ज़िम्मेदारियों को वह ओन करती हैं। यह फिल्म खूब चली – जबकि सिनेमा के बने हुए किसी भी ढर्रे को इस फिल्म में फाॅलो नहीं किया गया था।

मेरा रंगः आप पत्रकार रहे हैं, सिनेमा में दिलचस्पी भी रही, बहसतलब के नाम से सिनेमा को केंद्र में रखकर कई आयोजन किए, पहली बार कब फिल्म बनाने का विचार मन में कब और कैसे आया?

अविनाशः मैं बचपन से फिल्में बनाना चाहता था। लेकिन हिंदुस्तान का हर नागरिक एेसा चाहता है। सिनेमा की जन लोकप्रियता इसकी वजह है। जीवन की दूसरी परिस्थितियां और यथार्थ से टकराहट के चलते आदमी दूसरी पटरी पर जाता है। मैंने अपनी ज़िद बचा कर रखी थी। पत्रकारिता करते हुए सिनेमा देखना और सिनेमा पर बातें करना जारी था। आख़िर में जब बेचैनी हद से बढ़ने लगी, तो सब कुछ छोड़ छाड़ कर चार साल पहले मैं मुंबई आ गया।

मेरा रंगः ट्रेलर से पता लगता है कि यह एक ऐसी स्त्री के आत्मसम्मान और प्रतिरोध की कहानी है जिसके बारे में समाज की स्टीरियोटाइप अवधारणा है कि उसका कोई मान-सम्मान नहीं होता, यह थीम कैसे आई?

अविनाशः यूपी की एक स्ट्रीट सिंगर है, ताराबानो फ़ैज़ाबादी। अब वह यूपी में नहीं है। सीलमपुर की किन्हीं गलियों में गुम है। दस साल पहले मैंने एक म्यूज़िक वीडियो में उनका गाना सुना था। पहली बार। वीडियों में कुछ सेकंड के लिए ताराबानो को भी दिखाया गया था। बहुत ही इरोटिक गाना था, लेकिन चेहरे पर कोई भाव नहीं था। सपाट चेहरे से चिपका हुआ दर्द मेरे दिल में घुस गया। दर्द जब मेरे भीतर भी हद से गुज़रने लगा तो फिल्म की कहानी अपना चेहरा तलाशने लगी।

मेरा रंगः बतौर नायिका स्वरा भास्कर इस किरदार के लिए शुरु से आपके मन में थीं या कोई और नाम भी था?

अविनाशः मैं पहले रिचा चड्डा के साथ ये फिल्म कर रहा था। तब मैंने स्वरा को ये स्क्रिप्ट पढ़ने के लिए दी थी। वह एक इंटेलेक्चुअल लड़की है और उसकी राय मेरे लिए बहुत मायने रखती रही है। लेकिन जब रिचा के साथ ये फिल्म बनाने में मैं कामयाब नहीं हो पाया, तो स्वरा सीन में आयी।

मेरा रंगः क्या हाल के दिनों में सिनेमा में दिखाई जाने वाली स्त्री में कोई बदलाव आया है?

अविनाशः सिनेमा चूंकि ज़्यादा यथार्थवादी हो रहा है – तो आज हमारी फिल्मों में भी स्त्रियां अपने पूरे वजूद के साथ उपस्थित हो रही हैं। चाहे वो पाॅर्च्ड हो या हाइवे। पीकू हो या तनु वेड्स मनु।

मेरा रंगः एक औरत के संघर्ष को फिल्माते समय में पुरुष होने के नाते क्या कभी आपके मन में शक हुआ कि आप उसे सही तरीके से नहीं फिल्मा पाएंगे?

अविनाशः हर पुरुष के भीतर एक स्त्री होती है और हर स्त्री के भीतर एक पुरुष होता है। हमारी अपनी वैचारिकी हमारे मन को संचालित करती रहती है। इस लिहाज़ से जब मैं अपनी फिल्म बना रहा था, तो मैं एक स्त्री था। और पूरी तरह से एक स्त्री था। लिहाज़ा मेरे मन में कभी कोई संशय नहीं था कि मैं न्याय कर पाऊंगा या नहीं।

Tags: cinema
Previous Post

अच्छी लड़कियां गलतियाँ करके नहीं सीखतीं!

Next Post

मेरी जिंदगी के तमाम खूबसूरत पुरुषों को प्यार!

mera

mera

Related Posts

बॉलीवुड की पहली स्टंटवुमन रेशमा की कहानी पर बनी फिल्म, कौन थी रेशमा पठान?
सिनेमा

बॉलीवुड की पहली स्टंटवुमन रेशमा की कहानी पर बनी फिल्म, कौन थी रेशमा पठान?

by MeraRanng
February 22, 2019
निहलानी जी, फीमेल फैंटेसी से इतनी घबराहट क्यों हुई आपको?
सिनेमा

निहलानी जी, फीमेल फैंटेसी से इतनी घबराहट क्यों हुई आपको?

by mera
February 18, 2019
ओके जानूँ – प्यार में आदत पड़ जाती है एक-दूसरे की
सिनेमा

ओके जानूँ – प्यार में आदत पड़ जाती है एक-दूसरे की

by shalini
February 18, 2019
कामसूत्र, नटराज सिनेमा और हम लड़कियां
सिनेमा

कामसूत्र, नटराज सिनेमा और हम लड़कियां

by mera
February 18, 2019
Next Post
मेरी जिंदगी के तमाम खूबसूरत पुरुषों को प्यार!

मेरी जिंदगी के तमाम खूबसूरत पुरुषों को प्यार!

Comments 1

  1. Sudheer says:
    2 years ago

    Nice talk

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

मेरा रंग के बारे में

मेरा रंग [ #MeraRanng ] एक वैकल्पिक मीडिया है जो महिलाओं से जुड़े मुद्दों और सोशल टैबू पर चल रही बहस में सक्रिय भागीदारी निभाता है। यह स्रियों के कार्यक्षेत्र, उपलब्धियों, उनके संघर्ष और उनकी अभिव्यक्ति को मंच देता है। हमसे जु़ड़ने के लिए हमारा फेसबुक पेज लाइक करें और हमारे लेटेस्ट वीडियो देखने के लिए सब्स्क्राइब करें हमारा यूट्यूब चैनल।

Recommended

क्योंकि तुम बेटे हो…

क्योंकि तुम बेटे हो…

February 11, 2019
हँसने का यह मतलब नहीं कि हमारे साथ बदतमीजी की जाए!

हँसने का यह मतलब नहीं कि हमारे साथ बदतमीजी की जाए!

February 14, 2019

Categories

  • LGBTQ
  • इनसे मिलिये
  • किताबें
  • चर्चा में
  • मेरा अधिकार
  • मेरी अभिव्यक्ति
  • सिनेमा
  • स्पेशल रिपोर्ट
  • हेल्थ

Don't miss it

बॉलीवुड की पहली स्टंटवुमन रेशमा की कहानी पर बनी फिल्म, कौन थी रेशमा पठान?
सिनेमा

बॉलीवुड की पहली स्टंटवुमन रेशमा की कहानी पर बनी फिल्म, कौन थी रेशमा पठान?

February 22, 2019
अविनाश मिश्र का ‘चौंसठ सूत्र सोलह अभिमान’, जहां दैहिक प्रेम प्रार्थना में बदल जाता है
किताबें

अविनाश मिश्र का ‘चौंसठ सूत्र सोलह अभिमान’, जहां दैहिक प्रेम प्रार्थना में बदल जाता है

February 22, 2019
‘गली बॉय’ से मिल लिये अब जरा बग़ावती तेवर वाली इन रैपर गर्ल्स से भी मिलिये
चर्चा में

‘गली बॉय’ से मिल लिये अब जरा बग़ावती तेवर वाली इन रैपर गर्ल्स से भी मिलिये

February 19, 2019
लड़कियों गोरखपुर की श्रुति की तरह हिम्मत दिखाओ, लोग मदद के लिए आगे आएँगे
चर्चा में

लड़कियों गोरखपुर की श्रुति की तरह हिम्मत दिखाओ, लोग मदद के लिए आगे आएँगे

February 10, 2019
A poem on breakup
मेरी अभिव्यक्ति

तुमसे ब्रेकअप के सुख

February 15, 2019
MeToo on MeraRanng
चर्चा में

मेरा #MeToo उस वक्त का है, जब मेरे पास भाषा नहीं थी

February 14, 2019

#MeraRanng is an alternative media platform where we talk about various women’s issues.

मेरा रंग एक वैकल्पिक मीडिया प्लेटफॉर्म है जहां पर हम स्त्री की अभिव्यक्ति, अस्मिता और उसके अधिकार से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते हैं।

© 2019

  • होम
  • चर्चा में
  • स्पेशल रिपोर्ट
  • मेरा अधिकार
  • मेरी अभिव्यक्ति
  • हेल्थ
  • इनसे मिलिये
  • किताबें
  • सिनेमा
  • LGBTQ
  • गतिविधियां
  • हमारे बारे में
No Result
View All Result
  • होम
  • चर्चा में
  • स्पेशल रिपोर्ट
  • मेरा अधिकार
  • मेरी अभिव्यक्ति
  • हेल्थ
  • इनसे मिलिये
  • किताबें
  • सिनेमा
  • LGBTQ
  • गतिविधियां
  • हमारे बारे में

© 2019

Login to your account below

Forgotten Password? Sign Up

Fill the forms bellow to register

All fields are required. Log In

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In